Thursday, December 27, 2007

डर

डर क्या है, क्यों है, और किसका परिचायक है ...
ये तो डरने वाला ही बताने के लायक है ॥

अस्तित्वविहीन हो कर भी साकार है ...
शायद डर कल्पित आकार है ॥

साकार या निराकार, शायद डर का अस्तित्व दोहरा है ...
डरने वाले का चेहरा ही डर का चेहरा है ॥

स्रोत्र कुछ भी हो पर भाव वही आते हैं ...
डरने वाले कुछ ऐसा बताते हैं ॥

ऐ डर तेरा ऐसा भी क्या डर है ..
क्यों मरने के बाद भी तेरा असर है ॥

Wednesday, December 26, 2007

गरीब

जीवन कि यथार्थता के अति ही करीब ...
प्राणी नही, मानव नही, वह था गरीब ॥

निर्धन जीवन, निर्धन यौवन, निर्धनता ही उसका धन था ..
निर्धन साँसे, धड़कन निर्धन, स्वप्न भी था तो निर्धन था ॥

भिक्षा मांगी पर मिली नही ..
दीक्षा मांगी पर मिली नही ॥
थक हार गया फिर चूर हुआ ..
कुछ क्षण में ही मजबूर हुआ ॥
विधि का लेखा मंजूर हुआ ..
पत्थर ढोया मजदूर हुआ ॥

खुद कि आंते गला गला करता निस दिन वो भोजन था ..
कुछ कर दिखलाऊं जीवन में, मन ही मन में उसका मन था ॥
पर मृत हो चुकी थी आशाएं, भाग्याविहीन वो जीवन था ...
मर गया, न कब्र नसीब हुई, आख़िर वो भी तो निर्धन था ॥

यादें

शरमा के तेरा वो आँचल ओढ़ लेना ...
वो तेरी जुल्फों का रूक रूक के मोड़ लेना ॥
तेरा वो नज़रें उठाना और पलके छोड़ देना ...
वो तेरे अधखुले होंठों का किनारे पे जोड़ लेना ...
जैसे फूलों का कलियों से नाता तोड़ लेना ॥

आज फिर तेरे चेहरे का वो नूर याद आता है ...
आज फिर दिल में दर्द-ए-इश्क सताता है ॥
तेरे हुस्न का दीदार करने के बाद ...
मेरी पलकों का झुकना सालों बाद आता है ..

चाहत

इस से ज्यादा क्या मेरी रूह को राहत होगी ...
कि मेरी कब्र में मेरे साथ तेरी चाहत होगी ॥

ज़िंदगी

एक ग़ज़ल है ज़िंदगी और गाते जाना है ...
साज़ हैं धड़कने और साँसे शायराना हैं ॥
कि जी भर के गुनगुना लो ज़िंदगी को दोस्तों ...
जब वक़्त-बे-वक़्त मौत को आना है ॥

माँ शारदा स्तुति

माँ शारदे माँ शारदे ...
मेरी ज़िंदगी को तार दे ॥

मेरा आत्म है अन्धकार में ...
कुछ रौशनी हर बार दे ॥

मेरे आत्म बल में वृद्धि हो ...
मेरी बुद्धि को अकार दे ।।

मैं मिथ्यभाषी न बनूँ ...
मुझे सत्य का तू सार दे ॥

या कर सकूं, या मर सकूं ...
मुझे ध्येय का उपहार दे ॥

मैं रो रह हूँ जार जार ...
मेरी मातु तू पुकार दे ॥

माँ शारदे, माँ शारदे ...

तजुर्बा और हुनर

लोग कहते हैं कि तजुर्बे से हुनर होता है ...
पर हुनर पैदा नही होता, पैदायशी हुनर होता है .

क्षितिज

जमीं उठी थी ....
आसमा झुका था ....
वक़्त कि राह पे चलता मुसाफिर रुका था ....
बिजलियों कि कौंध जब खतम सी हुई ....
मैंने देखा एक नया क्षितिज बन चुका था .