Wednesday, December 26, 2007

गरीब

जीवन कि यथार्थता के अति ही करीब ...
प्राणी नही, मानव नही, वह था गरीब ॥

निर्धन जीवन, निर्धन यौवन, निर्धनता ही उसका धन था ..
निर्धन साँसे, धड़कन निर्धन, स्वप्न भी था तो निर्धन था ॥

भिक्षा मांगी पर मिली नही ..
दीक्षा मांगी पर मिली नही ॥
थक हार गया फिर चूर हुआ ..
कुछ क्षण में ही मजबूर हुआ ॥
विधि का लेखा मंजूर हुआ ..
पत्थर ढोया मजदूर हुआ ॥

खुद कि आंते गला गला करता निस दिन वो भोजन था ..
कुछ कर दिखलाऊं जीवन में, मन ही मन में उसका मन था ॥
पर मृत हो चुकी थी आशाएं, भाग्याविहीन वो जीवन था ...
मर गया, न कब्र नसीब हुई, आख़िर वो भी तो निर्धन था ॥

2 comments:

just pragya.. said...

he,s dead or alive ,no one wants to know
has to work for life,its sunny or snow....
really awesome thought.....plz continue writing...

Anonymous said...

kya yeh poetry abhi bhi uski yaad dilati hai yaa usiki yaad mein likhate ho