शरमा के तेरा वो आँचल ओढ़ लेना ...
वो तेरी जुल्फों का रूक रूक के मोड़ लेना ॥
तेरा वो नज़रें उठाना और पलके छोड़ देना ...
वो तेरे अधखुले होंठों का किनारे पे जोड़ लेना ...
जैसे फूलों का कलियों से नाता तोड़ लेना ॥
आज फिर तेरे चेहरे का वो नूर याद आता है ...
आज फिर दिल में दर्द-ए-इश्क सताता है ॥
तेरे हुस्न का दीदार करने के बाद ...
मेरी पलकों का झुकना सालों बाद आता है ..
Wednesday, December 26, 2007
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