Wednesday, December 26, 2007

ज़िंदगी

एक ग़ज़ल है ज़िंदगी और गाते जाना है ...
साज़ हैं धड़कने और साँसे शायराना हैं ॥
कि जी भर के गुनगुना लो ज़िंदगी को दोस्तों ...
जब वक़्त-बे-वक़्त मौत को आना है ॥

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