Wednesday, December 26, 2007

क्षितिज

जमीं उठी थी ....
आसमा झुका था ....
वक़्त कि राह पे चलता मुसाफिर रुका था ....
बिजलियों कि कौंध जब खतम सी हुई ....
मैंने देखा एक नया क्षितिज बन चुका था .

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