Saturday, February 16, 2008

लौट के तू आ

कटती नही है शामो सहर, लौट के तू आ ...
मौजें हुई हैं तितर बितर, लौट के तू आ ॥

अनजान सी हैं दीवारें, बेज़ुबान सी खिड़कियाँ ...
किसी और का लगता है ये घर, लौट के तू आ ॥

फीकी हुई है चाय, तनहा सी पयालियाँ ....
लो दिन गया फ़िर से गुज़र, लौट के तू आ ॥

सूनी पड़ी है चादरें, तनहा सी रजाइयाँ ...
रात हुई, सो चुका है शहर, लौट के तू आ ॥

तू नही, कोई नही, बस फैली हुई हैं तनहाइयाँ ॥
गुमाँ नही कौन सा है पहर, लौट के तू आ ॥

गिनता रहा पिछले पहर, तारों की क्यारियाँ ...
फ़िर बजा चौराहे का गज़र, लौट के तू आ ॥

सूरज उगा, सुबह हुई, मजिलों को हैं सवारियां ...
जाऊं तो मैं जाऊं किधर, लौट के तू आ ॥

अनजान से हैं चहरे, अनसुनी सी कहानियां ...
नज़रें ढूँढें हैं इधर उधर, लौट के तू आ ॥

गुम है खोजता हूँ तेरे घर की खोई हुई पगडन्डियाँ ...
दुनिया गई है मेरी ठहर, लौट के तू आ ॥

वीरानगी तन्हाइयां महफ़िल में रुस्वाइयां ...
साँसे आती हैं सिहर सिहर, लौट के तू आ ॥

फसती हैं धड़कने, साँसों में हिचकियाँ ...
सह रहा हूँ दोजख का कहर, लौट के तू आ ॥

खुलती रही फ़िर बोतलें, लुटती रही पयालियाँ ...
घुलता रहा लहू में ज़हर, लौट के तू आ ॥

4 comments:

vijai said...

very good
vijai kumar singh(barabanki)
your padosi in every aspect

Rakesh Tewari said...

Thanks Barabanki

just pragya.. said...

i asked maself why i miss you
may be becaz i am me when i am wid you...

missing hope..i can feel it...

Anonymous said...

well said..nice lines..