Saturday, February 16, 2008

खा़नाबदोश

कुछ तिनके जोड़ता हूँ अब मैं रोज़ दर रोज़ ...
आशियानों की तमन्ना है ऐ ज़िंदगी खा़नाबदोश ।

कसमसाती है अब मेरे ख़यालों की वो दुनिया ...
कुछ ठिकानों की तमन्ना है ऐ ज़िंदगी खा़नाबदोश ।

मंज़िलों को ढूंढते हैं तेरे दिल के मेरे दिल के रास्ते ...
कुछ मकानोँ की तमन्ना है ऐ ज़िंदगी खा़नाबदोश ।

मेरे पहलू में हो महबूब मेरा, बस ऐसी ...
कुछ अज़ानों की तमन्ना है ऐ ज़िंदगी खा़नाबदोश ।

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