झांको अपने अपने गिरेह्बानो में,
पल पल बदलती अपनी अपनी जुबानो में,
की इस जमीन को नंगा कर के,
न खुश रह सकोगे अपने मकानों में.
उठना तुमको ही है और तुम ही उठोगे,
के वतन परस्ती नहीं बिकती दुकानों में.
अब तो छोडो नोचना इस जमीन को,
कुछ तो फर्क होता है आदमी और हैवानो में.
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